Saturday, February 27, 2016

शिव अर्चना,एवं मंत्र


ॐ नमः शिवाय
शिव गायत्री मन्त्र-
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ||
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श्री  पञ्चाक्षरस्तोत्रम्  -
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय , भस्मगराय महेश्वराय |
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय , तस्मै 'न'कराय नमः शिवाय ||
मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय , नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय |
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय , तस्मै 'न'कराय नमः शिवाय ||
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द - सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय |
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय  , तस्मै 'न'कराय नमः शिवाय ||
वशिष्ठकम्भोद्भवगौतमार्य - मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय |
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय  , तस्मै 'न'कराय नमः शिवाय ||
यक्षस्वरूपाय जटाधराय , पिनाकहस्ताय सनातनाय |
दिव्याय देवाय दिगम्बराय , तस्मै 'न'कराय नमः शिवाय || 
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसंनिधौ |
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ||
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महामृत्युञ्जय मन्त्रं -
अघोरेभ्यो,अघोरेभ्यो,घोरघोरतरेभ्यः | सर्वतः शर्वसर्वेभ्यो |
नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेभ्यः मृत्युञ्जय,त्र्यम्बकं ,सदाशिव नमस्ते ||
ॐ ह्नौं जूं सः भूर्भुवः स्वः 
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं 
उर्वारुकमिवबन्धनान्मृत्योर्मोमोक्क्षीय माऽमृतात् 
ॐस्वः ॐ भुवः भूः ॐ सः जूं ह्नौं ॐ |
आकाशे तारका लिङ्गं ,पाताले हाटकेश्वरम् |
मृत्युलोके महाकालेश्वरम् त्रिये लिङ्गं नमस्तुते ||
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ॐकार बिन्दु संयुक्तं , नित्यम् , ध्यायते जायते |
काम , दम , मोक्षो संयम  ,ॐकाराय नमो नमः ||
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् |
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवै नमः    
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बारह   ज्योतिर्लिङ्ग
सोमनाथ सौराष्ट्र में ,काशी मे विश्वेश |
महाकाल उज्जैन मे,शिवाले मे घृष्मेश ||
भीमशङ्कर डाकिनी  , सेतु बन्ध रामेश |
त्रयम्बकगोतमी  तीर पर,दारुक  बन नागेश ||
मल्लिकार्जुन श्री शैल पर ,हिमगिरि पर केदार |
चिता भोमो अस्थान पै वैद्यनाथ भवहार ||
 ओंकार ममलेश्वर,रेवा तट दोई नाम|
द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग को सदा करुं  प्रणाम ||
श्रद्धा सहित जो ध्यावहि  निशदिन मे दोई बार |
सर्व पाप से मुक्त हो पावें सिद्धि अपार |
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शिवरुद्राष्टकम्  
नमामीशमीशान  निर्वाणरूपं |
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं ||
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं |
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहं ||
अर्थात् मोक्षस्वरुप,विभु ,व्यापक ब्रह्म ओर् वेदस्वरूप,ईशानदिशा
के ईश्वरतथा सबके स्वामी ,शिव शङ्कर मैं आपको नमस्कार करता हूं |
निजस्वरूप में स्थित ( अर्थात मर्यादारहित ) ,मायिक गुणों से रहित ,
भेदरहित ,इच्छा रहित, चेतन आकाशस्वरूप  एवं आकाश को ही वस्त्ररूप
 में धारण करने वाले दिगंबर (अथवा आकाश को भी आच्छादित करने
  वाले ) आपको मैं भजता हूं |
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं |
गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशं ||
करालं महाकालकालं कृपालं |
गुणागार संसारपारं नतोऽहं ||
अर्थात्  निराकार,ओंकार के मूल,तुरीय (तीनों गुणों ) से अतीत ,वाणी
,ज्ञान ओर इन्द्रियों से परे कैलासपती,विकराल,महाकाल के भी काल
कृपालु गुणों के धाम संसार से परे आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूं |
तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं |
मनोभूत कोटि प्रभा श्रीशरीरं ||
स्फ़ुरन्मौलिकल्लोलिनी चारु गंगा |
लसद्भालबालेन्द कण्ठे भुजङ्गा ||
अर्थात् जो हिमाचल के सामान गौर वर्ण तथा गम्भीर है ,जिनके शरीर में करोड़ों
 कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है ,जिनके मस्तक पर सुन्दर गंगाजी विराजमान
 हैं ,जिनके ललाट पर द्वितीया का चन्द्रमा और गले में सर्प शुशोभित है ।
चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं विशालम् |
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं ||
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं |
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ||
अर्थात् जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं ,सुन्दर भृकुटी और विशाल नेत्र हैं ,जो
प्रसन्नमुख , नीलकण्ठ और दयालु हैं ,सिंहचर्म का वस्त्र  धारण किये मुण्डमाला
 पहने हैं उन सबके प्यारे और सबके नाथ (कल्याण  करने  वाले ) श्री शंकरजी
को मैं भजता हूँ ।
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं|
अखण्डं अजं  भानुकोटिप्रकाशं ||
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं |
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं ||
अर्थात्  प्रचण्ड (रुद्ररूप),श्रेष्ठ , तपस्वी ,परमेश्वर ,अखण्ड ,अजन्मा,करोड़ों सूर्यों के
सामान प्रकाश वाले ,तीनों प्रकार के शूलों  (दुःखों ) को निर्मूल करने वाले ,
हाथ में त्रिशूलधारण किये ,भाव (प्रेम) के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के 
पति श्रीशङ्कर को मैं भजता हूँ । 
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी |
सदा सच्चिदानन्ददाता पुरारी ||
चिदानन्द संदोह मोहापहारी |
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ||
अर्थात्  कलाओं से पर,कल्याणस्वरूप ,कल्पका अन्त (प्रलय ) करने वाले,सज्जनों को
सदाआनंद देने वाले , त्रिपुरा के शत्रु ,सच्चिदानन्दघन ,मोह को हरने वाले ,मन
को मथ डालने वाले कामदेव के शत्रु ,हे प्रभु प्रसन्न होइए ,प्रसन्न होइए ।
न यावद्  उमानाथ पादारविन्दं |
भजमतीह लोके परा वा नराणां ||
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं |
प्रसीद प्रभो सर्वभूतादिवासं ||
 अर्थात् पार्वतीजी  के पति जब तक मनुष्य आपके चरणों को नहीं भजते ,तब तक
उन्हें ना तो इहलोक और परलोक में सुख शान्ति मिलती है और ना ही उनके पापों
 का नाश होता है ।अतः  हे समस्त जीवों के अंदर (ह्रदय में )निवास करने वाले प्रभु
 । प्रसन्न होइए ।
न जानामि योगं जपं नैव पूजां |
नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं ||
जराजन्म दुः खौघ -तातप्यमानं |
प्रभो पाहि आपन्न्मामीश शंभो || 
अर्थात् मैं न तो योग जनता हूँ ,न जप और न पूजा ही । हे शम्भो ,मै तो सदा -सर्वदा
 आपको ही नमस्कार करता हूँ । हे प्रभो,बुढ़ापा तथा जन्म - मृत्यु के दुःख समूहों से
 जलते हुए मुझ दुखी की दुःख से रक्षा कीजिये । हे ईश्वर ,हे शम्भो मैं
आपको नमस्कार करता हूँ ।
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये |
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ||
अर्थात् भगवान् रुद्र की स्तुति का यह अष्टक उन शङ्कर की  तुष्टि (प्रसन्नता )
के लिये ब्राह्मण द्वारा कहा गया है | जो मनुष्य इसे भक्तिपूर्वक  पढते हैं , उन
पर भगवान शम्भु प्रसन्न होते हैं |







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