Tuesday, May 10, 2016

सोमवार व्रत कथा

सोमवार व्रत कथा 
विधि : सोमवार का व्रत साधारणतया  दिन के तीसरे पहर तक होता है व्रत में फलाहार का कोई विशेष नियम नहीं है ,परन्तु यह आवश्यक है की केवल एक ही बार भोजन किया जाये । सोमवार का व्रत शिवजी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है । इस दिन शिव पार्वती का पूजन किया जाता है। सोमवार का व्रत सामान्यतया तीन प्रकार का होता है -१. साधारण प्रति सोमवार ,२.सौम्य प्रदोष ,३.सोलह सोमवार । इन तीनों व्रतों की विधि एक जैसी ही है । शिव पूजन के लिए अक्षत अर्थात चावल (जो कि समूचे अर्थात टूटे हुए न हों ) चढ़ाना चाहिए । शिव के मस्तक का चन्द्रमा शीतलता का प्रतीक है । इस प्रकार शिव के पूजन से शान्ति की अनुभूति होती है । शिव पूजन के पश्चात कथा सुननी चाहिए ।
                                                                १. साधारण प्रति सोमवार
कथा : एक बहुत धनवान साहूकार था ,जिसके घर में धन आदि किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी । परन्तु उसको एक ही दुःख था कि उसके कोई पुत्र नही था । वह इसी चिंता में रात - दिन रहता था । वह पुत्र की कामना के लिये प्रति सोमवार को शिव जी का व्रत किया करता था तथा  सायंकाल  को शिव मंदिर में दीपक भी जलाया करता था । उसके इस भक्तिभाव को देखकर एक समय श्री पार्वती जी ने शिव महाराज से कहा कि '' हे महाराज!यह साहुकार आपका अनन्य भक्त है और सदैव आपका व्रत और पूजन बड़ी श्रद्धा से करता है । आपको इसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिये । "
शिव  शङ्कर ने कहा कि "हे पार्वती !यह संसार कर्मक्षेत्र है । जैसे किसान खेत में बीज बोता है वैसा ही फल काटता है । उसी तरह इस संसार में प्राणी जैसे कर्म करता है वैसे ही फल भोगता है ।" पार्वती  ने अत्यंत आग्रह से कहा "महाराज!जब यह आपका अनन्य भक्त है और इसको अगर किसी प्रकार का दुःख है तो उसको अवश्य दूर करना चाहिए क्योंकि आप सदैव अपने भक्तों पर दयालु होते हैं और उनके दुःखों को दूर करते हैं यदि आप ऐसा नही करेंगे तो मनुष्य क्यों आपकी सेवा व्रत किया करेंगे । ''
पार्वती  का ऐसा आग्रह देख शिवजी महाराज कहने  लगे  -''हे पार्वती ! इसके कोई पुत्र नहीं है इसी चिंता में यह अत्यन्त दुःखी रहता है । इसके भाग्य पुत्र न होने पर भी मैं इसको पुत्र की प्राप्ति का वर देता हूँ । परन्तु यह पुत्र केवल बारह वर्ष तक जीवित रहेगा । इसके पश्चात वह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा । इससे अधिक मैं इसके लिए और कुछ नहीं कर सकता । '' यह सब बातें साहुकार सुना रहा था । इससे उसको न कुछ  प्रसन्नता हुई और  कुछ दुःख हुआ । वह पहले की भाँति ही शिव पूजन और व्रत करता रहा । कुछ काल व्यतीत हो जाने पर साहुकार की स्त्री  गर्भवती हुई और दसवें महीने उसके गर्भ से अति सुन्दर पुत्र की प्राप्ति हुई । साहुकार के घर में ख़ुशी मनाई गई किन्तु केवल बारह वर्ष तक की आयु जान साहुकार ने अधिक प्रसन्नता प्रकट नहीं की और ना ही किसी को यह  भेद बतलाया । जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हो गया तो बालक की  माता ने  विवाह आदि के लिये कहा तब वह साहुकार कहने लगा की मैं  अभी इसका विवाह नहिं करूंगा ,अभी इसे काशी पढ़ने के लिए भेजूंगा । साहुकार ने अपने साले अर्थात बालक के मामा को बुलाकर बहुत सारा धन देकर    कि तुम इस बालक को काशी पढ़ने के लिए ले जाओ और रास्ते में जिस स्थान पर भी जाओ यज्ञ कराते और ब्राह्मणों  को भोजन कराते जाना।
    वह दोनों मामा भांजे यज्ञ करते और ब्राह्मणों  को भोजन  कराते जा रहे थे । में उनको एक शहर पड़ा । उस शहर में  राजा की कन्या का विवाह था और दूसरे राजा का लड़का जो बरात लेकर आया था वह एक आँख से  काना था । उसके पिता को इस बात की बड़ी चिंता थी की वर को देख कहीं  पिता विवाह में किसी प्रकार की अड़चन न  पैदा कर दें । इस कारण जब उसने अति सुन्दर सेठ के लडके को देखा तो उसने मन में विचार किया कि क्यों न दरवाजे के समय इस लडके से वर का काम चलाया जाये । ऐसा विचार कर उस लड़के और मामा से बात की तो वे राजी हो गए । फिर उस लड़के को वर के कपडे पहना तथा घोड़ी पर चढ़ा दरवाजे पर ले गए और सब कार्य प्रसन्नता से पूर्ण हो गया ।  फिर लडके के पिता ने सोचा की विवाह कार्य भी इसी लडके से करा दिया जाये तो क्या बुराई है ??ऐसा विचार कर लडके और उसके मामा से कहा की यदि फेरों और कन्यादान का कार्य भी आप करा दें तो आपकी बड़ी कृपा होगी ?मैं इसके बदले में आपको बहुत सारा धन दूँगा तो उन्होंने स्वीकार कर लिया । विवाह कार्य बहुत अच्छी तरह से संपन्न हो गया । परन्तु जिस समय लड़का जाने लगा उसने राजकुमारी के चुनरी के पल्ले पर लिखा दिया कि तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ है परन्तु जिस राजकुमार के साथ तुझे विदा करेंगे वह एक आँख से काना है । मैं काशी जी पढ़ने जा रहा हूँ । लडके के जाने के पश्चात जब राजकुमारी ने ऐसा लिखा हुआ पाया तो उसने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया और कहा कि यह मेरा पति नहीं है । मेरा विवाह इसके साथ नहीं हुआ है। वह तो काशी जी पढ़ने गए हैं । राजकुमारी के माता पिता ने अपनी कन्या को विदा नहीं  किया और बरात वापस चली गई । उधर सेठ का लड़का और उसका मामा काशी पहुँच गए । वहाँ जाकर उन्होंने यज्ञ करना और लड़के ने पढ़ना आरम्भ कर दिया था । जब लड़के की आयु बारह वर्ष हो गई उस दिन उन्होंने यज्ञ रचा था की लड़के ने अपने मामा से आकर कहा कि  -'' मामा जी आज मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं है।'' मामा ने कहा -''अंदर जाकर आराम करो ।''लड़का अंदर जाकर सो गया । थोड़ी देर में उसके प्राण निकल गए । जब उसके मामा ने आकर देखा तो वह मुर्दा पड़ा है तो उसको बड़ा दुःख हुआ और उसने सोचा कि अगर मैं अभी रोना पीटना मचा दूँगा  तो मेरा यज्ञ का कार्य अधूरा रह जायेगा । अतः उसने जल्दी से यज्ञ का कार्य समाप्त कर ब्राह्मणों के जाने के पश्चात रोना पीटना आरम्भ कर दिया । संयोगवश उसी समय शिव और पार्वती उधर से जा रहे थे । जब उन्होंने जोर -जोर से रोने की आवाज सुनी तो पार्वती जी कहने लगीं -''महाराज  कोई दुःखी रो रहा है । इसके कष्ट दूर कीजिये ।'' जब शिव -पार्वती ने पास जाकर देखा तो वाहन एक लड़का मुर्दा पड़ा था । पार्वती कहने लगीं कि  महाराज यह तो उसी सेठ का लड़का है जो आपके वरदान से पैदा हुआ था । शिवजी कहने लगे -''हे पार्वती !इसकी आयु इतनी ही थी सो यह भोग चुका। ''तब पार्वती ने कहा '' हे महाराज ! कृपा करके इस बालक को और आयु दो अन्यथा इसके माता -पिता तड़प-तड़प मर जायेंगे । '' पार्वती  के बार- बार आग्रह करने पर शिवजी ने उसको  दिया और शिव -पार्वती की कृपा से लड़का जीवित हो गया । शिव -पार्वती कैलाश चले गए ।
वह लड़का और उसके मां उसी प्रकार यज्ञ करते तथा ब्राह्मणों  को भोजन कराते अपने घर की और चल पड़े । रास्ते में उसी शहर में आए जहां उसका विवाह हुआ था । वहां पर आकर उन्होंने यज्ञ आरम्भ किया तो लडके के ससुर  ने पहचान लिया और अपने महल में ले जाकर उसकी बड़ी खातिर की । साथ ही बहुत सारे दास- दसियों  सहित आदर के  साथ लड़की और जमाई को विदा किया । जब वे अपने शहर के निकट आए तो मामा ने कहा की मैं पहले घर जाकर खबर कर आता हूँ । जब लडके का मामा घर पहुँचा तो उसने देखा कि लड़के के माता  पिता घर की छत पर बैठे थे और उन्होंने यह प्रण कर रखा था कि यदि हमारा पुत्र सकुशल घर आ गया तो हम राजी ख़ुशी नीचे आ जायेंगे  अन्यथा छत से गिर कर अपने प्राण दे देंगे । इतने में उसके मामा ने आकर यह समाचार दिया कि आपका पुत्र आ गया है ,तो उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ। तब उसके मामा ने शपथपूर्वक कहा कि आपका पुत्र अपनी स्त्री के साथ बहुत सारा धन तथा दस दसियों  को लेकर आया है तो सेठ ने आनंद के साथ उसका स्वागत किया  और बड़ी प्रसन्नता के साथ रहने लगे । इसी प्रकार से जो कोई भी सोमवार के व्रत को धारण करता है अथवा इस कथा को  सुनता है   मनोकामनाएं पूर्ण  हैं ।
                                                                  ॐ नमः शिवाय